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शिक्षा के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण : सावित्री बाई फुले की विरासत

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नई दिल्ली :  शिक्षक दिवस उन महान व्यक्तित्वों को सम्मानित करने का अवसर है, जो अपने ज्ञान और मार्गदर्शन से राष्ट्र का भविष्य संवारते हैं। इस दिन हम भारत की प्रथम महिला शिक्षिका और समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले (1831–1897) को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं, जिन्होंने हमारे देश में महिला शिक्षा की नींव रखने के लिए पुराने सामाजिक पूर्वाग्रहों को साहसपूर्वक चुनौती दी थी।

ऐसे दौर में जब महिलाओं की शिक्षा को नापसंद किया जाता था और अक्सर हिंसक तरीके से इसका विरोध किया जाता था, सावित्रीबाई फुले ने अपने पति महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए स्कूल खोले। उन्होंने केवल पढ़ाया ही नहीं, बल्कि पाठ्यक्रम भी तैयार किए और महिलाओं को ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रेरित करने हेतु कविताएँ भी लिखीं। उनका जीवन साहस का प्रमाण था—वह रोज़ाना एक अतिरिक्त साड़ी के साथ स्कूल जाती थीं, क्योंकि रूढ़िवादी पुरुष उन पर कीचड़ और पत्थर फेंकते थे। फिर भी वह डटी रहीं, क्योंकि वह जानती थीं कि भारत का भविष्य उसकी बेटियों की शिक्षा में निहित है।

सुधारकों की विरासत और समानता का आह्वान

सावित्रीबाई फुले अपने संघर्ष में अकेली नहीं थीं। भारत के समाज सुधार की यात्रा को राजा राम मोहन राय जैसे महान व्यक्तित्वों ने दिशा दी, जिन्होंने सती प्रथा, बाल विवाह के खिलाफ आवाज़ उठाई और महिला शिक्षा का समर्थन किया। ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह और बालिका शिक्षा की वकालत की। आगे चलकर महात्मा गांधी ने भी इस बात पर ज़ोर दिया कि ‘महिलाओं की शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का सबसे शक्तिशाली माध्यम है।’ इन सभी सुधारकों का मानना था कि जब तक महिलाएँ शिक्षा से सशक्त नहीं होंगी, भारत को सच्चे अर्थों में स्वतंत्रता नहीं मिल सकती।

यह विरासत आज भी आधुनिक भारत की आकांक्षाओं को दिशा दे रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अक्सर इस बात पर ज़ोर दिया है कि भारत की विकास यात्रा महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास से आगे बढ़ेगी। ‘विकसित भारत@2047’ का विज़न भी इसी सोच पर आधारित है, जिसमें महिलाओं को राष्ट्र निर्माण का समान भागीदार बनाया गया है, और इस सशक्तिकरण की नींव शिक्षा है।

महिलाएँ और शिक्षा : अब तक की प्रगति

स्वतंत्रता के बाद से इस दिशा में हुई प्रगति उल्लेखनीय रही है। महिला साक्षरता, जो 1951 में मुश्किल से 8.86 प्रतिशत थी, आज बढ़कर 65.46 प्रतिशत (2011 की जनगणना के अनुसार) हो चुकी है और हाल के सर्वेक्षणों से स्कूलों में लड़कियों के बढ़ते नामांकन यह इंगित करते हैं कि इसमें लगातार सुधार हो रहा है।एकीकृत जिला शिक्षा सूचनाप्रणाली (यूडीआईएसई+) 2021-22 के अनुसार, प्राथमिक स्तर पर लड़कियों का सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) अब लड़कों की तुलना में अधिक है।

मोदी सरकार ने 2015 में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना शुरू की, जिसने समाज की सोच बदली, बाल लिंगानुपात में सुधार किया और स्कूली शिक्षा के हर स्तर पर लड़कियों के नामांकन को बढ़ाया। पोषण अभियान, मिशन शक्ति और सामर्थ्य जैसी पहल मिलकर ऐसा ढांचा तैयार करती हैं, जिसमें शिक्षा को पोषण, सुरक्षा और अवसर का सहारा मिलता है। यूडीआईएसई+ 2024-25 के आँकड़े बताते हैं कि पहली बार भारत में महिला शिक्षकों की संख्या कुल स्कूली शिक्षकों का 54.2 प्रतिशत हो गई है, जो 2014-15 के 46.9 प्रतिशत से कहीं अधिक है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास संस्थान कर दिया है।यह संस्थान महिलाओं और बच्चों से संबंधित कार्यक्रमों को मज़बूत बनाने के लिए क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण और अनुसंधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यह सुनिश्चित करता है कि नीतियाँ ज़मीनी स्तर पर प्रभावी रूप से क्रियान्वित हों। सावित्रीबाई फुले के नाम के साथ, यह संस्थान शिक्षा और सुधार के माध्यम से महिला सशक्तिकरण के उनके विजन के प्रति जीवंत श्रद्धांजलि है।

फिर भी कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं। कम उम्र में विवाह, सुरक्षा की चिंता और आर्थिक कारणों से कई लड़कियाँ माध्यमिक स्तर पर पढ़ाई छोड़ देती हैं। सरकार इन चुनौतियों को दूर करने के लिए छात्रवृत्ति, आवासीय सुविधा, मासिक धर्म स्वच्छता पहल और डिजिटल शिक्षा के अवसर उपलब्ध करा रही है, ताकि हर लड़की बिना रुकावट अपनी पढ़ाई पूरी कर सके।

राष्ट्र-निर्माता के रूप में शिक्षक

महिला शिक्षकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। वे केवल पढ़ाने का काम नहीं करतीं, बल्कि लाखों बालिकाओं के लिए प्रेरणा और आदर्श भी बनती हैं। इसी तरह वे सावित्रीबाई फुले की मशाल को आगे बढ़ा रही हैं। अध्ययन बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिला शिक्षकों की उपस्थिति से लड़कियों का स्कूल में नामांकन और पढ़ाई जारी रखने की संभावना बढ़ जाती है। गरीबी के चक्र को तोड़ने और परिवारों को बेहतर भविष्य का सपना दिखाने में उनका योगदान बेहद अहम है।

विकसित भारत की ओर

जैसे-जैसे भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य की ओर अग्रसर है, शिक्षा विकास का प्रमुख वाहक बनी हुई है। विशेषकर महिलाओं की शिक्षा, इसके प्रभाव को कई गुना बढ़ा देती है: शिक्षित महिलाएँ बेहतर स्वास्थ्य सेवा, कम शिशु मृत्युदर, उच्च पारिवारिक आय और मज़बूत समुदाय सुनिश्चित करती हैं। यूनेस्को के अनुसार, एक लड़की की स्कूली शिक्षा का प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष उसकी भविष्य की आय में 10-20 प्रतिशत की वृद्धि करता है।

इसलिए, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय अपनी योजनाओं को सतत विकास लक्ष्य 4 (गुणवत्तापूर्णशिक्षा) और सतत विकास लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता) के अनुरूप बनाना जारी रखे हुए है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी लड़की पीछे न छूटे।हम शिक्षा को पोषण, सुरक्षा और कौशल विकास के साथ जोड़कर ऐसा माहौल तैयार कर रहे हैं जहाँ महिलाएँ विद्यार्थी, शिक्षक, उद्यमी और नेता बनकर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सकें।

सामूहिक संकल्प

सावित्रीबाई फुले की कहानी हमें इस बात की याद दिलाती है कि सच्ची प्रगति साहस से ही जन्म लेती है। पुणे की उनकी साधारण कक्षा से लेकर आधुनिक भारत की उन कक्षाओं तक, जहाँ करोड़ों लड़कियाँ प्रतिदिन शिक्षाग्रहण करती हैं, यह यात्रा महिलाओं और शिक्षा के प्रति समाज के दृष्टिकोण में आए व्‍यापक बदलाव को दर्शाती है।लेकिन यह मिशन अभी अधूरा है।

शिक्षक दिवस को मनाते हुए, आइए हम उनके विजन और हमारे प्रधानमंत्री के इस आह्वान के प्रति स्वयं को पुनःसमर्पित करें कि महिला सशक्तिकरण कल्याण नहीं, बल्कि राष्ट्रीय शक्ति का विषय है।यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रत्येक लड़की शिक्षित हो, प्रत्येक महिला सशक्त हो और प्रत्येक शिक्षक का सम्मान हो, हम अपने सपनों का भारत बना सकते हैं।

सावित्रीबाई फुले की विरासत केवल इतिहास नहीं है – यह हमारे वर्तमान के लिए जीवंत मार्गदर्शक और भविष्य के लिए प्रकाशस्तंभ है। उनके साहस के प्रकाश में हम यह देख सकते हैं कि विकसित भारत का मार्ग उसके बेटियों और बेटों द्वारा समान रूप से नेतृत्व किया जाएगा।

  • लेखक : सावित्री ठाकुर, महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री भारत सरकार