कोटद्वार (गौरव गोदियाल)। उत्तराखण्ड के पहाड़ी और मैदानी इलाकों में रसीले, जायकेदार और पौष्टिक फल भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं । लेकिन काफल की बात अलग है । पूरे भारत में गर्मी भले ही आम का मौसम हो, लेकिन पहाड़ी लोगों के लिए गर्मी काफल का मौसम है । काफल एक स्थानीय फल है, जिसका हल्का मीठा-तीखा अद्भुत स्वाद कमाल है, न सिर्फ इतना बल्कि इसका सेवन आपको पेट के रोगों से भी दूर रखता है । एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर काफल, अधिकतर बीमारियों में कारगर है और पहाड़ी लोगों की स्वस्थ जीवनशैली की असल वजह भी है ।
दरअसल काफल दिखने में तो छोटे जामुन जैसा होता है, मगर इसका खट्टा-मीठा और रसीला स्वाद किसी का भी मनमोह लेता है । हालांकि काफल को उगाना इतना आसान नहीं है, क्योंकि ये कम तापमान में नहीं उगता और तापमान ज्यादा होने पर ये जीवित नहीं रहता, ऐसे में पहाड़ी क्षेत्र में ही काफल पाएं जाते हैं । खासतौर पर नैनीताल, पौड़ी, टिहरी और रानीखेत में काफल को उगाने के लिए उपयुक्त जलवायु परिस्थितियां मौजूद होती हैं । साल के फरवरी माह में ही काफल के पेड़ पर फूल आना शुरू हो जाते हैं और अप्रैल अंत तक काफल पक जाता है, शुरू में इसका रंग हरा होता है और अप्रैल माह के आखिर में यह फल पककर तैयार हो जाता है, तब इसका रंग सुर्ख लाल हो जाता है । ये फल ज्यादा नहीं टिक पाता, और क्योंकि पहाड़ी क्षेत्र में यह कम और सीमित अवधि में ही उगता है, इसलिए स्थानीय बाजार तक ही इसकी बिक्री सीमित रहती है ।
देवदार व बांज के पेड़ों के बीच उगने वाले इस फल का स्वाद लेने के सबके अपने-अपने तरीके हैं, मगर स्थानीय लोग खासतौर पर इस खट्टे-मीठे फल को तेल, नमक या सेंधा नमक और मिर्च पाउडर के साथ खाना पसंद करते हैं । बता दें कि देश के पहाड़ी राज्य उत्तराखंड का यह राजकीय फल है । कई बार उत्तराखंड के लोकगीतों में भी इसका जिक्र किया जाता है । उत्तराखंड के अलावा ये फल हिमांचल, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, असम, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम आदि में भी पाया जाता है । काफल एक मामूली ठेठ पहाड़ी फल जरूर है मगर यह पौष्टिकता से भरा है । इसमें कैल्शियम, कार्बोहाईड्रेट, मैग्नीशियम, प्रोटीन, फाइबर, वसा, पोटेशियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है ।