देवाल (चमोली)। मुझे बनानी अपनी पहचान आसमां तक है, मैं कैसे हार मान लूं और थक कर बैठ जाऊं, मेरे हौसलों की बुलंदी आसमां तक है। इन पंक्तियों को सार्थक करनें में बडे शिद्दत से जुटी हुई है सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाक की सरोजनी कोटेडी। शुक्रवार को वाण गांव में लाटू मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर सरोजनी कोटेडी देवाल से वाण तक 40 किलोमीटर की दौड लगायी। सरोजनी के सपने आसमान के विस्तार से भी बड़े हैं। संघर्ष से तपकर अपनी चमक बिखेरने को तैयार 20 साल की सरोजनी। देवाल के चैड़ गांव की निवासी है सरोजनी। इनके पिताजी गंगा सिंह कोटेडी किसान है जबकि मां रुकमा देवी गृहणी। मध्यमवर्ग परिवार से तालुक रखने वाली सरोजनी का सपना है रनिंग में एक दिन देश के लिए ऑलंपिक में प्रतिभाग करना जिसके लिए वो जी जान से जुटी हुई है। सरोजनी नें बूरागाड से 12 वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की लेकिन पारिवारिक कारणो से वो आगे की पढाई नही कर सकी। सरोजनी का जीवन संघर्ष और अभावों में बीता है या यों कहिए की सरोजनी को संघर्ष विरासत में मिला। यही वजह रही कि उसने मेहनत से कभी मुंह नहीं मोड़ा। सरोजनी ने बिना संसाधनो अपने के प्रतिभा को साबित किया है। सरोजनी रनिंग में अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपनी छाप छोड़ना चाहती है।
इन प्रतियोगिताओं में कर चुकी है प्रतिभाग
- अगस्त 2021 में पांच किलोमीटर दौड, देवाल, प्रथम स्थान
- अक्टूवर 2021 में पांच किलोमीटर दौड, देवाल, प्रथम स्थान
- फरवरी 2022 को नारायण बगड़ 1600 मीटर, प्रथम स्थान
- 14 फरवरी 2022 को पुलवामा अटैक के शहीदों को श्रद्धांजलि- 50 किलोमीटर दौड़, चैड़ से नारायणबगड़
- अप्रैल 2022 कोटेश्वर मंदिर, रूद्रप्रयाग से चिरबिटिया, 52 किलोमीटर प्रथम स्थान
- मई जून 2022 श्रीनगर और कर्णप्रयाग में पांच किलोमीटर दौड में प्रथम स्थान
- 26 जुलाई 2022 को कारगिल दिवस पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए 25 किलोमीटर दौड़ बूरागाड से थराली
- सात दिसम्बर 2022 को शहीद दिवस के अवसर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए अपने चैड़ से सवाड गांव तक 35 किलोमीटर की दौड़
इसके अलावा सरोजनी ने अन्य विभिन्न दौड प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और प्रथम, द्वितीय स्थान प्राप्त किया। सरोजनी नें खेल महाकुंभ रैली में चक्का फेंक में ब्लॉक और फिर जनपद में प्रथम स्थान प्राप्त किया अब राज्य के लिए चयन हुआ है। बकौल सरोजनी पहाड में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, यदि सही मार्गदर्शन और अवसर मिले तो पहाड की बेटियां भी ऑलंपिक में मेडल ला सकती हैं। मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति उतनी मजबूत नहीं है कि वो मुझे किसी स्पोर्ट्स काॅलेज में भेज सके। वास्तव में देखा जाए तो पहाड में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यहां के युवाओं में प्रतिभाएं कूट-कूट कर भरी हुई है। यदि सही समय पर इन्हें तराशा जाय और बेहतर सुविधायें और मंच प्रदान किया जाय तो ये होनहार एक दिन अंतरराष्ट्रीय फलक पर देश का नाम रोशन कर सकते हैं। चमोली के मनीष रावत, मानसी नेगी, परमजीत जैसे उदाहरण हमारे पास मौजूद हैं। उम्मीद की जानी चाहिए की सरोजनी की मेहनत एक दिन जरूर रंग लायेगी और वो अपने गांव ही नही जनपद, राज्य और देश का नाम रोशन करेंगी।